(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है सोनिक बूम जिससे दहला पेरिस? (What is Sonic Boom that Rattled Paris?)
ज़रा सोचिये आप घर पर बैठे हैं ...अचानक एक ज़ोर की आवाज़ आती है और घर की खिड़कियों के शीशे तक चटक जाते हैं। सुनने में किसी भयानक घटना से कम नहीं लगता है लेकिन ये हुआ है.... बीते 30 सितंबर को फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक तेज धमाके सी आवाज़ ने पूरे शहर को दहला दिया। .....इस घटना के बाद शहर में लाखों लोग सहमकर घरों से बाहर आ गए और एमरजैंसी नंबरों पर फ़ोन लगाने लगे। हालांकि, बाद में पता चला कि धमाके सी आवाज़ एक फाइटर जेट से आई थी। यह घटना सोनिक बूम की वजह से हुई थी। कुछ इसी तरह की घटना बीते दिनों बेंगलुरु में भी सामने आई थी, जिसने लोगों को असमंजस में डाल दिया था। ये सोनिक बूम, वायु यानों के काफी तेज़ गति से चलने की वजह से पैदा होती है....
DNS में आज हम आपको सोनिक बूम के बारे में बताएँगे और साथ ही, समझेंगे कि आखिर सोनिक बूम की वजह से इतनी तेज आवाज़ कैसे पैदा हो जाती है…..
ध्वनि तरंगों के रूप में चलती है। यह तरंगे आम तौर पर जिस
स्त्रोत से पैदा होती हैं उनसे बाहर की ओर को चलती हैं....हवा में इन तरंगों की
रफ़्तार कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे हवा का तापमान और
ऊँचाई...किसी रुके हुए स्त्रोत से जैसे टेलीविज़न सेट या रेडियो से पैदा होने वाली
ध्वनि तरंगे हमेशा बाहर की ओर को चलती है....ये तरंगे सामान केंद्र वाले गोलों के
रूप में चलती हैं जिनकी त्रिज्या बाहर की ओर बढ़ती हुई रहती है...इसके उलटे जब आवाज़
किसी चलते हुए माध्यम से निकलती है जैसे ट्रक से तो इससे निकलने वाली तरंगे ट्रक के
सामने एक दूसरे के करीब होती जाती है जबकि ट्रक के पीछे ये फैलती जाती हैं। यह सब
कुछ होता है डॉप्लर प्रभाव की वजह से.......यह देखा गया है कि जब हम ज़्यादा रफ़्तार
के साथ ध्वनि के एक स्थिर स्रोत के करीब आते हैं तो ध्वनि की पिच अधिक होती है....और
अगर हम ध्वनि के स्रोत से दूर चले जाते हैं तो पिच कम हो जाती है....स्रोत या
पर्यवेक्षक की सापेक्षिक गति के कारण तरंगों की पिच या आवृत्ति में यह बदलाव ही
डॉपलर प्रभाव के नाम से जाना जाता है...
जब कोई विमान ध्वनि की गति से कम स्पीड से उड़ता है तो उसके द्वारा उत्पन्न प्रेशर डिस्टरबेंस या साउंड सभी दिशाओं में फैल जाती है, लेकिन सुपरसोनिक वेग में दबाव क्षेत्र एक खास इलाके तक सीमित होता है.... ये दबाव क्षेत्र अक्सर विमान के पिछले हिस्से में फैलता है और एक सीमित चौड़े कोन में आगे बढ़ता है जिसे मैक कोन कहा जाता है....
विमान के आगे बढ़ने के साथ ही पीछे की ओर कोन का पैराबोलिक किनारा पृथ्वी से टकराता है और एक जबर्दस्त धमाका या बूम पैदा करता है.....जब इस तरह का विमान काफी लो अल्टीट्यूड में या नीचे उड़ता है, तो यह शॉक वेव इतनी ज्यादा तीव्रता का होता है कि इनसे खिड़कियों के शीशे तक टूट सकते हैं। इस वजह से हमें विस्फोट या बादलों के गड़गड़ाहट जैसी आवाज सुनाई देती है....इसके अलावा इंसानों की सेहत पर भी इसका बुरा असर देखा जा सकता है....यही वजह है की दुनिया के कई देशों में सुपरसोनिक विमानों को ज़्यादा आबादी वाले क्षेत्रों से उड़ाना प्रतिबंधित है...
साल 1947 में अमेरिकी सेना के पायलट चक ईगर ऐसे पहले विमान चालक
बने जिन्होंने बेल एक्स 1 विमान 1127 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ाकर नया
कीर्तिमान बनाया.....उस वक़्त से सुपरसोनिक
उड़ानों का चलन शुरू हुआ.....आज उन्नत तकनीकी के दौर में ऐसे विमान आ गए हैं जिन्हे
3 मैक या धवनि के वेग से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ाया जा सकता है..